हर किसी ने बाराबंकी के हरख क्षेत्र में हुई उस भीषण घटना के बारे में सुना, जिसने पांच जिंदगियों को लील लिया। मगर इस दुखद दुर्घटना का एक ऐसा पहलू है, जो न सिर्फ अनकहा रह गया, बल्कि उस बहादुरी और बलिदान की अनदेखी करता है, जिसने इस घटना को और बड़ा होने से बचा लिया।

इस हादसे में जहां कई परिवारों के चिराग बुझ गए, वहीं एक नाम ऐसा भी है, जिसने आखिरी सांस तक अपनी जिम्मेदारी को निभाया, नाम है संतोष सोनी,सुबेहा का यह साधारण सा दिखने वाला युवक, उस दिन असाधारण बन गया। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का बस चालक, जो केवल बस नहीं चला रहा था, बल्कि दर्जनों ज़िंदगियों को अपने विवेक, साहस और समर्पण से मौत के मुंह से खींच लाया। सोचिए, अगर वो पेड़ बस के ठीक ऊपर गिर जाता… उस बस में लगभग 60 सवारियाँ थीं,बच्चे, बुज़ुर्ग, महिलाएं, काम पर जाते लोग ,शायद हम आज कहीं ज़्यादा शवगणना पढ़ रहे होते। मगर संतोष सोनी ने समय रहते खतरे को भाँपा। उसने प्रयास किया, चेताया, रोका पर प्रकृति की क्रूरता के सामने कुछ क्षण कम पड़ गए।

वो पेड़ गिरा… जानें गईं… और संतोष सोनी भी उस हादसे का हिस्सा बन गए। मगर फर्क इतना था कि वो केवल पीड़ित नहीं थे वो रक्षक भी थे,अपनी जान देकर उन्होंने दूसरों की जान बचाई। क्या हम ऐसे नायकों को भूल सकते हैं? क्या हम केवल आँकड़ों तक सीमित कर दें ऐसे बलिदानों को? नहीं ऐसे लोगों को चाहिए सम्मान, पहचान, और सरकारी स्तर पर सहानुभूति, ताकि उनके परिवारों को सिर्फ आँसू नहीं, बल्कि जीने की एक नयी वजह मिले।

हम एम डी न्यूज चैनल परिवार सरकार से यह करबद्ध अनुरोध करते हैं कि संतोष सोनी जैसे वीर के परिजनों को सरकारी नौकरी के माध्यम से अनुकंपा नियुक्ति दी जाए। यह न केवल एक परिवार की मदद होगी, बल्कि समाज में यह संदेश भी जाएगा कि जो देश के लिए जीता और मरा, उसे देश नहीं भूलता। आज जब हम संतोष सोनी जी को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, तो आँखें नम हैं, मगर दिल गर्व से भरा है। ऐसे लोग ही असली हीरो होते हैं, न कोई कैमरा, न कोई पुरस्कार! बस कर्तव्य की भावना और दूसरों की जिंदगी बचाने की अदम्य इच्छाशक्ति।

संतोष सोनी जी, आपको मृत्युपरांत कोटिशः नमन,आप चले जरूर गए, मगर जो ज़िंदगियाँ आपने बचाई वो आज भी आपकी बहादुरी की गवाही देती हैं और भविष्य में भी गवाही देती रहेंगी…
आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी।

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