मोबाइल–टीवी की लत से तेजी से बढ़ रहे हैं मायोपिया के मामले, बाहर खेलना और धूप में समय बिताना बन सकता है सरल बचाव बीते कुछ वर्षों में पांच से दस साल की उम्र वाले बच्चों में चश्मा लगने के मामले कई गुना बढ़ गए हैं।सीपीयन आई केयर सेंटर परसा के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ अमित शर्मा बताते हैं कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मोबाइल, टीवी और टैबलेट की बढ़ती आदत और बाहर खेलने के समय में लगातार कमी है। एम्स और अन्य संस्थानों की रिपोर्टों में साफ कहा गया है कि बच्चों में मायोपिया के केस पिछले दो दशकों में कई गुना तक बढ़ चुके हैं और अगर हालात नहीं बदले तो आने वाले वर्षों में अधिकतर बच्चों को कम उम्र में ही स्थायी चश्मे का सहारा लेना पड़ सकता है।आंख छोटी स्क्रीन को नजदीक से और लगातार देखने पर आंखों की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है, जिससे निकट दृष्टिदोष (मायोपिया) तेजी से विकसित होता है। वहीं, जब बच्चा बाहर प्राकृतिक रोशनी में समय बिताता है तो रेटिना पर पड़ने वाली रोशनी और शरीर में बनने वाला विटामिन D आंखों के लिए सुरक्षात्मक भूमिका निभाते हैं और मायोपिया की प्रगति धीमी हो सकती है। वही कई अध्ययनों में पाया गया है कि जो बच्चे रोज़ कम से कम दो घंटे खुली धूप या खुले आसमान के नीचे खेलते हैं, उनमें दृष्टि कमजोर होने का खतरा उन बच्चों की तुलना में काफी कम होता है जो दिन भर घर के अंदर स्क्रीन से चिपके रहते हैं।डॉ अमित शर्मा सलाह देते हैं कि माता-पिता सबसे पहले अपने घर में स्क्रीन इस्तेमाल की स्पष्ट मर्यादा तय करें। दो साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखना और बड़े बच्चों के लिए पढ़ाई सहित कुल स्क्रीन टाइम को सीमित घंटों में बांटना आवश्यक है। हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखने वाला नियम (20–20–20 रूल) अपनाने से भी आंखों पर पड़ने वाला तनाव घटाया जा सकता है। साथ ही, बच्चों के स्कूल बैग के साथ‑साथ उनकी आउटडोर गतिविधि का “टाइमटेबल” भी बनाना होगा, ताकि रोजाना कम से कम 90 से 120 मिनट वह पार्क, मैदान या छत पर खुले आसमान के नीचे सक्रिय रह सकें डॉ अमित शर्मा यह भी मानते हैं कि केवल चश्मा लगवा देना समाधान नहीं है, बल्कि मायोपिया की स्पीड को धीमा करने के लिए नियमित फॉलो‑अप और समुचित जीवनशैली जरूरी है।संतुलित आहार, पर्याप्त नींद, शरीर की संपूर्ण व्यायाम और समय-समय पर आंखों की जांच से भविष्य में होने वाले गंभीर परिणाम जैसे हाई मायोपिया, रेटिना की बीमारियां और समय से पहले कम दृष्टि का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है।आज जरूरत है कि परिवार, स्कूल और समाज मिलकर बच्चों को “डिजिटल कैद” से निकालें और उन्हें फिर से आसमान, पेड़‑पौधों और मैदानों से जोड़ें।अगर प्रत्येक अभिभावक यह संकल्प ले कि दिन में कम से कम दो घंटे वह अपने बच्चे को स्क्रीन से दूर रखकर बाहर ले जाएगा, तो आने वाली पीढ़ी की आंखों को अंधेरे भविष्य से बचाया जा सकता है।
डॉ अमित शर्मा
पीएचडी इन ओप्तोमेट्री
सी पी अन आई केयर सेंटर परसा

By MD NEWS

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *