लखनऊ। उत्तर प्रदेश के निजी स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता की जांच का व्यापक अभियान प्रदेश की सरकार ने शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने बिना मानक योग्यताओं के शिक्षकों से पढ़ाई कराए जाने पर नाराजगी जताई, जिसके बाद शिक्षा विभाग सभी जिलों से विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहा है। एनसीटीई के नियमों के अनुसार डीएलएड, बीएड, सीटीईटी और टीईटी योग्यताएँ अनिवार्य हैं, लेकिन कई शिक्षकों के बिना इन योग्यता प्रमाणपत्रों के ही पढ़ाने की शिकायतें सामने आई हैं।

शिकायत के बाद जांच के आदेश

झांसी निवासी राहुल जैन द्वारा उपलब्ध कराए गए ठोस साक्ष्यों के आधार पर एनसीटीई तक यह गंभीर शिकायत पहुंची। इसमें कई निजी स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा कक्षाएं संचालित किए जाने की बात सामने आई। इससे छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इस शिकायत के बाद अब सभी 75 जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षकों को आदेश दिया गया है कि वे निजी स्कूलों के प्रत्येक शिक्षक की शैक्षणिक अर्हता की जांच करें और जहां मानकों के विपरीत शिक्षक पाए जाएं, उन्हें तुरंत हटाया जाए।

शुल्क के रूप में मोटी रकम लेकिन कम वेतन—निजी स्कूलों की दोहरी नीति

निजी स्कूल अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूलते हैं, लेकिन इसके बावजूद शिक्षक अक्सर कम वेतन पर नियुक्त किए जाते हैं। कई स्कूल योग्य शिक्षक न मिलने पर बीए या एमए पास उम्मीदवारों से भी क्लासेज चलवा लेते हैं। ऐसे में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलना मुश्किल हो जाता है।

मुख्य सचिव तक पहुँची शिकायत

बिना अर्हता शिक्षक रखने की शिकायत सीधे मुख्य सचिव एस.पी. गोयल और अपर मुख्य सचिव (बेसिक एवं माध्यमिक शिक्षा) तक पहुंच गई है। इसके बाद शिक्षा विभाग ने कठोर रुख अपनाते हुए जिलों में जांच की जिम्मेदारी सौंपी है। शासन की सख्ती के चलते अब यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि प्रदेश में कोई भी निजी स्कूल शिक्षण मानकों की अनदेखी न कर सके।

गुणवत्ता पर विशेष जोर

इस योग्यता जांच अभियान का मुख्य उद्देश्य राज्यभर में एक समान शिक्षण गुणवत्ता सुनिश्चित करना है। जब शिक्षक प्रशिक्षित और योग्य होंगे, तभी छात्रों का भविष्य सुरक्षित रहेगा। शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम भी न्यूनतम व्यावसायिक योग्यता अनिवार्य करता है, जिसे कई स्कूल नजरअंदाज करते रहे हैं।
इस कार्रवाई के बाद न केवल अपात्र शिक्षकों की छंटनी होगी, बल्कि स्कूलों को भी योग्य और प्रशिक्षित स्टाफ नियुक्त करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता मजबूत होगी और निजी स्कूलों में ‘व्यापार’ की जगह ‘शिक्षण गुणवत्ता’ को प्राथमिकता मिलेगी।

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