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सहायक ब्यूरो चीफ रफीउल्लाह खान की स्पेशल रिपोर्ट रामपुर से
हर वर्ष 3 दिसंबर को पूरी दुनिया विश्व दिव्यांग दिवस (International Day of Persons with Disabilities) मनाती है। यह दिवस न केवल दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की प्रेरणा देता है, बल्कि समाज को यह समझ भी कराता है कि दिव्यांगता कमजोरी नहीं*, *बल्कि एक* ऐसी स्थिति है जिसमें थोड़े* सहयोग और संवेदनशीलता* की आवश्यकता होती है।
विश्व दिव्यांग दिवस का उद्देश्य
इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है:
दिव्यांग व्यक्तियों के सम्मान, अधिकार और आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करना
समाज में जागरूकता बढ़ाना और भेदभाव को समाप्त करना
शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और आधारभूत ढांचे में दिव्यांग-अनुकूल व्यवस्था को बढ़ावा देना
दिव्यांगजनों की प्रतिभा और योगदान को पहचान देना
दिव्यांगता: चुनौती नहीं, क्षमता की पहचान
हमारे देश और दुनिया में करोड़ों लोग विभिन्न प्रकार की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदनात्मक चुनौतियों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन अनेक ऐसे दिव्यांगजन हैं जिन्होंने अपनी सीमाओं को ताकत में बदलकर दुनिया को प्रेरित किया है — जैसे:
सुदर्शन पत्नायक (बालू मूर्ति कलाकार)
निक वुजीसिक (बिना हाथ-पैर जन्मे प्रेरक वक्ता)
हेलेन केलर
अरुणिमा सिन्हा (माउंट एवरेस्ट विजेता)
इन सभी ने साबित किया है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो और समाज सहयोगी हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।
दिव्यांगजन और समाज की भूमिका
दिव्यांगजनों को केवल सहानुभूति की नहीं, बल्कि समान अवसरों और सम्मान की आवश्यकता होती है। समाज की भूमिका है कि:
स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, बस-स्टेशन, अस्पताल और सार्वजनिक स्थान दिव्यांग-अनुकूल (Accessible) हों
शिक्षा और रोजगार में उनके लिए उचित अवसर और प्रशिक्षण उपलब्ध हो
शासन स्तर पर मिल रही UDID कार्ड, पेंशन योजना, विकलांग आरक्षण, वैद्यकीय सुविधा, सुलभ भारत अभियान जैसी योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुँचे
दिव्यांगता को समझना – भाषा और व्यवहार में बदलाव
हमारे शब्द भी किसी के मनोबल को मजबूत या कमजोर कर सकते हैं। इसलिए हमें कहना चाहिए:
अपाहिज / विकलांग
दिव्यांग / Person with Disability
यह न केवल भाषा में परिवर्तन है बल्कि सोच में बदलाव का प्रतीक है।
निष्कर्ष
विश्व दिव्यांग दिवस हमें याद दिलाता है कि:
“दिव्यांगता शरीर में होती है, सपनों में नहीं।”
अगर समाज, सरकार और आम नागरिक मिलकर सहयोग की भावना के साथ कार्य करें तो दिव्यांगजन भी समान अधिकारों, सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन जी सकते हैं।
यह दिवस केवल मनाने का नहीं, बल्कि विचार बदलने, प्रण लेने और व्यवहार में परिवर्तन लाने का दिन है।
आइए, संकल्प लें कि हम एक ऐसा समाज बनाएँगे, जहाँ कोई भी व्यक्ति अपनी शारीरिक सीमाओं के कारण पीछे न रह जाए।
समावेशी भारत – सशक्त भारत।
जय हिंद।
डॉक्टर वसीम रज़ा
राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार एण्ड एंटी करप्शन मिशन
संस्थापक – दिव्यांग हुनर रोजगार मिशन

