उर्दू अकादमी दिल्ली की मदद से भारतीय महिला विकास समिति देहली मनाएगी “अदब की रोशनी में जश्ने डॉक्टर अख़लाक़”

उनकी किताब “संदल”, “मुट्ठी भर सूरज” मचा चुकी है धूम

जल्द ही “ज़ख्मदान” भी मंज़र-ए-आम पर आने वाला है

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लखीमपुर खीरी। दशकों से शेरो शायरी के जरिए लोगों की धड़कन बने डॉ0 अख़लाक़ के सम्मान में दिल्ली में जश्ने डॉ0 अख़लाक़ मनाया जाएगा, जिसमें पूरे हिंदुस्तान के शायर और तमाम बुद्धजीवी शामिल होंगे।
दिल्ली के नागलोई मेट्रो स्टेशन के निकट सुरभि स्टूडियो में होने वाले इस सम्मान समारोह के मौके पर ऑल इंडिया मुशायरा भी आयोजित किया गया है। अगर डॉ0 अख़लाक़ की बात करे तो उनका जन्म 1972 में यूपी के सीतापुर ज़िले के हरगांव क़स्बे के पास इस्माईलपुर में हुआ। उन्होंने सन् 1995 में शायरी की दुनिया में क़दम रखा और वह शुरुआत से ही अपने शे’रों में जिद्दत की राह चुनी, जिससे उनकी शायरी ख़ास-ओ-आम में मक़बूल होने लगी। सन् 2004 में उन्होंने लखीमपुर में सुकूनत अख़्तियार की अदबी सफ़र नशिस्तों,मुशायरों से शुरू होकर आकाशवाणी लखनऊ, दूरदर्शन लखनऊ और दूरदर्शन दिल्ली तक पहुंचा। उन्होंने न सिर्फ़ ग़ज़ल बल्कि नज़्म, क़तआत, नात पाक, हम्द, रूबाई और अफ़साना निगारी में भी अपने क़लम के जौहर दिखाए हैं।
उनका पहला शे’री मजमुआ “संदल” सन् 2015 में फ़ख़रुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी लखनऊ, की माली इमदाद से छपा सन् 2023 में दूसरी किताब “मुट्ठी भर सूरज” को भी फ़ख़रुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी ने इमदाद दी।तीसरा मजमुआ “ज़ख्मदान” जल्द ही मंज़र-ए-आम पर आने वाला है।
30 नवंबर 2025 को उर्दू अकादमी दिल्ली की माली इमदाद से, भारतीय महिला विकास समिति देहली डॉक्टर अख़लाक़ का जश्न “अदब की रोशनी में जश्ने डॉक्टर अख़लाक़” उनवान से मनाने जा रही है, जिससे लखीमपुर की अदबी माहौल में खुशी की लहर है।
इस जश्न के मौक़े पर डॉक्टर ख़्वाजा सैयद हादी-उल-जीलानी ने कहा कि-ये ख़बर दिल को बेहद मसर्रत, इत्मीनान और सआदत का अहसास अता कर रही है कि डॉक्टर अख़लाक़ साहब की अदबी और इल्मी ख़िदमात के एतराफ़ में दिल्ली जैसे अज़ीम, जाज़िबे नज़र और अदबी शान रखने वाले शहर में निहायत पुर वक़ार और तारीख़ी नौइयत की तक़रीब “जश्ने डॉक्टर अख़लाक़” मुनक्क़िद की जा रही है। उन्होंने आगे कहा- डॉक्टर अख़लाक़ की शख्सियत हमेशा से इल्मो फ़न की रोशनी, तहज़ीब-ओ-अख़लाक़ की खुशबू और खिदमते क़लम के खुलूस से पुर रही है। उन्होंने जिस मोहब्बत, सादगी और फ़िक्री इस्तक़ामत के साथ उर्दू अदब की ख़िदमत अंजाम दी है वो न सिर्फ अदबी हल्क़ों में आपको मुमताज़ बनाती है बल्कि नई नस्ल के लिए भी आपको एक रौशन मिसाल की हैसियत अता करती है।

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